Sunday, July 3, 2011

गीत

झील सी ठहरी नदी में कौन यह कंकड़ उछाला ?

एक हलचल सी हुई ,
उठने लगीं सोयी तरंगें |
लो!लगीं विस्तार लेने ,
चूमने को तट तरगें |
चीरता निस्तभ्धता निस्पंद नभ का रव निराला |
झील सी ठहरी नदी में कौन यह कंकड़ उछाला ?

तार वीणा के खिचे तो ,
तार सप्तक झनझनाया |
शांत सहमे पंछियों ने ,
एक स्वर में गीत गाया |

चीख कर नन्हा भुजंगा व्याध का छीना निवाला |
झील सी ठहरी नदी में कौन यह कंकड़ उछाला ?

उड़ चले नभ में पखेरू ,
प्रगति पथ पर पंक्ति बांधे |
नीड़ नवनिर्माण का ,
संकल्प ले ,उच्छ्वास साधे |

रात काली तिलमिलाई ,झांकता नभ से उजाला |
झील सी ठहरी नदी में कौन यह कंकड़ उछाला ?

                      रघुनाथ प्रसाद

Wednesday, June 8, 2011

gajal

केवल उस तकिये ने देखा ,बिन मौसम बरसात |
जिसने दिया सहारा सर को ,तनहा सारी रात |

कितना दर्द  दबा रक्खा ,दिल के तहखाने ने ,
मुस्काती आँखें हरजाई ,कह दी सारी बात |

जलता तिल-तिल झिलमिल-झिलमिल स्नेह भोर की आस ,
अदना दीपक क्षीण वर्तिका ,उसपर झंझावात |

मस्त फकीरा खाली झोली ,लेकिन हृदय विशाल ,
भीख दया की उसे न भाये ,ना कोई खैरात |

बिस्तर धरती अम्बर चादर ,घर सारा संसार ,
तोलेगा दौलत से उसको ,किसकी ये अवकात|

बिन बोले कुछ चलागया कल ,ना जाने किस ओर ,
छोड़ गया कुछ खट्टे- मीठे ,अनुभव के सौगात |

                                रघुनाथ प्रसाद