झील सी ठहरी नदी में कौन यह कंकड़ उछाला ?
एक हलचल सी हुई ,
उठने लगीं सोयी तरंगें |
लो!लगीं विस्तार लेने ,
चूमने को तट तरगें |
चीरता निस्तभ्धता निस्पंद नभ का रव निराला |
झील सी ठहरी नदी में कौन यह कंकड़ उछाला ?
तार वीणा के खिचे तो ,
तार सप्तक झनझनाया |
शांत सहमे पंछियों ने ,
एक स्वर में गीत गाया |
चीख कर नन्हा भुजंगा व्याध का छीना निवाला |
झील सी ठहरी नदी में कौन यह कंकड़ उछाला ?
उड़ चले नभ में पखेरू ,
प्रगति पथ पर पंक्ति बांधे |
नीड़ नवनिर्माण का ,
संकल्प ले ,उच्छ्वास साधे |
रात काली तिलमिलाई ,झांकता नभ से उजाला |
झील सी ठहरी नदी में कौन यह कंकड़ उछाला ?
रघुनाथ प्रसाद