केवल उस तकिये ने देखा ,बिन मौसम बरसात |
जिसने दिया सहारा सर को ,तनहा सारी रात |
कितना दर्द दबा रक्खा ,दिल के तहखाने ने ,
मुस्काती आँखें हरजाई ,कह दी सारी बात |
जलता तिल-तिल झिलमिल-झिलमिल स्नेह भोर की आस ,
अदना दीपक क्षीण वर्तिका ,उसपर झंझावात |
मस्त फकीरा खाली झोली ,लेकिन हृदय विशाल ,
भीख दया की उसे न भाये ,ना कोई खैरात |
बिस्तर धरती अम्बर चादर ,घर सारा संसार ,
तोलेगा दौलत से उसको ,किसकी ये अवकात|
बिन बोले कुछ चलागया कल ,ना जाने किस ओर ,
छोड़ गया कुछ खट्टे- मीठे ,अनुभव के सौगात |
रघुनाथ प्रसाद
भीख दया की उसे न भाये ,ना कोई खैरात |
बिस्तर धरती अम्बर चादर ,घर सारा संसार ,
तोलेगा दौलत से उसको ,किसकी ये अवकात|
बिन बोले कुछ चलागया कल ,ना जाने किस ओर ,
छोड़ गया कुछ खट्टे- मीठे ,अनुभव के सौगात |
रघुनाथ प्रसाद