Wednesday, August 25, 2010

ग़ज़ल "ये ज़रूरी नहीं जो भी कहे जुबान कहे"

ये जरुरी नहीं जो भी कहे जुबान कहे .
सिलें जो होठ ,ये जमीं वो आसमान कहे .

किसी अदब किसी जुबान से नहीं मुम्किन .
जो बात नजर कहे ,पलक बेजुबान कहे .

जरूर इर्द गिर्द मुफलिसी पली होगी ,
आसमां चूमता ये महल आलिशान कहे

कोई सदमा जरुर दिल में दबा रक्खा है .
तिरी लबों की हंसी ,यार बाईमान कहे.

हवा का रुख बता रहा बहार आएगी ,
झडे हैं शाख के पत्ते ,शजर वीरान कहे .

बड़े सिद्दत से बागवां इन्हें पाला होगा ,
महकते फूल ,दिलफरेब गुलिस्तान कहे .
                 रघुनाथ प्रसाद

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