ये जरुरी नहीं जो भी कहे जुबान कहे .
सिलें जो होठ ,ये जमीं वो आसमान कहे .
किसी अदब किसी जुबान से नहीं मुम्किन .
जो बात नजर कहे ,पलक बेजुबान कहे .
जरूर इर्द गिर्द मुफलिसी पली होगी ,
आसमां चूमता ये महल आलिशान कहे
कोई सदमा जरुर दिल में दबा रक्खा है .
तिरी लबों की हंसी ,यार बाईमान कहे.
हवा का रुख बता रहा बहार आएगी ,
झडे हैं शाख के पत्ते ,शजर वीरान कहे .
बड़े सिद्दत से बागवां इन्हें पाला होगा ,
महकते फूल ,दिलफरेब गुलिस्तान कहे .
रघुनाथ प्रसाद
Wednesday, August 25, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
very good.
ReplyDelete