जब इच्छाओं का ज्वार थम जाए ,
संवेदनाओं की अनुभूति कम जाए ,
प्रतिकार ,समझौता पर थम जाए ,
उदगार वर्फ सा जम जाए ,
तो समझ लें ,बुढापा आ गई .
जब आस-पास धुंधलका छाये ,
दूर दृष्टी प्रखर हो जाए ,
सहज हो औरों को समझाना ,
पर खुद को समझा न पायें ,
तो समझलें,बुढापा आ गई .
जब स्मृति भूत से जुड़ने लगे ,
वर्त्तमान कपूर सा उड़ने लगे,
जो भी प्रश्न करें खुद से,
यक्ष प्रश्न बन बिसूरने लगे,
तो समझलें बुढापा आ गई .
जब कदम साहस के, डगमगाने लगें,
अभिव्यक्ति के स्वर लडखडाने लगे,
भटकाने लगें चिर परीचित राहें,
तिनके का सहारा लुभाने लगे,
तो समझलें बुढापा आ गई.
जब अपने ही अंग विद्रोह पर उतरें,
कहिये कुछ, कुछ और कर गुजरें,
जब गजल ठुमरी,सकुचाने लगे,
मन वीणा निर्गुण सुनाने लगे,
तो समझलें बुढापा आ गई
रघुनाथ प्रसाद .
Monday, December 13, 2010
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