Wednesday, December 15, 2010

अशआर पेशे खिदमत फसले बहार के |
उल्लू तमाम काबिज डाली अनार के |

इस अंजुमन में होना गर आप को शरीक,
तो आइये शर्मोहया गैरत उतार के |

आने लगेगी खुशबू बदबू सनी गली से,
ना हो यकीं तो देखें दो घूंट मार के |

किससे करेंगे बातें होशोहवास की,
बैठे हैं शेख साहब सागर डकार के |

गंजे के हाथ में वो कंघी थमा के बोले,
महफ़िल में आप बैठें जुल्फें संवार के |

दौलत मुकाम शोहरत आयेंगे आप चलके,
पहने इजार कुरता अचकन उतार के |

अब तो खुदा से यारों है इल्तजा हमारी,
दरिया को मय से भर दे,पानी निकारके |

"गुमनाम" है वो शायर जिसने कभी न पी,
चल तालियाँ बटोरें पीकर उधार के |
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             रघुनाथ प्रसाद

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