अशआर पेशे खिदमत फसले बहार के |
उल्लू तमाम काबिज डाली अनार के |
इस अंजुमन में होना गर आप को शरीक,
तो आइये शर्मोहया गैरत उतार के |
आने लगेगी खुशबू बदबू सनी गली से,
ना हो यकीं तो देखें दो घूंट मार के |
किससे करेंगे बातें होशोहवास की,
बैठे हैं शेख साहब सागर डकार के |
गंजे के हाथ में वो कंघी थमा के बोले,
महफ़िल में आप बैठें जुल्फें संवार के |
दौलत मुकाम शोहरत आयेंगे आप चलके,
पहने इजार कुरता अचकन उतार के |
अब तो खुदा से यारों है इल्तजा हमारी,
दरिया को मय से भर दे,पानी निकारके |
"गुमनाम" है वो शायर जिसने कभी न पी,
चल तालियाँ बटोरें पीकर उधार के |
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रघुनाथ प्रसाद
Wednesday, December 15, 2010
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