दरवाजे पर धूप खड़ी, अंदर घनघोर अंधेरा क्यों?
चौकठ पर बर्छी भाला ले पहरेदार लुटेरा क्यों?
कंधे बैठा बाज व्याध के पिंजरा कम्पा हाथ लिए,
तनी गुलेल पेड़ की टहनी चक्रव्यूह का घेरा क्यों?
घने धुन्ध में ढ़ूँढ़ रहीं हैं डैना ताने ललमुनियाँ।
कहाँ हमारा रैन बसेरा, उत्तर ने मुँह फेरा क्यों?
मेघ भटकते दिशाहीन, धरती प्यासी, अंकुर सूखें।
झंझावात तड़ित डाले, पर्वत के ऊपर डेरा क्यों?
यक्ष प्रश्न बन खड़ा, सही उत्तर कोई दे पाएगा?
पोषण का प्रहरी बन जाता, शोषक का मौसेरा क्यों?
Saturday, July 4, 2009
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It is a political sataire,irony of our times which finds expression in your expression with environmental overtones and concern for the political environments.Badhaai .virendra sharma
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