लोग उम्रे दराज़ की दुआएँ करते हैं
यहाँ ये हाल है, किश्तों में रोज़ मरते हैं
और जीने का कहीं कोई भी मकसद तो हो ?
बेवजह ख्वाब का पैबंद रफू करते हैं
किया गुनाह तो सिला गुनाह का लाजिम
वो होंगे और जो अपनी सजा से डरते हैं
गिला नसीब का करना बुजदिली यारों,
शेर दिल आप ही तकदीर लिखा करते हैं
आरजू आसमां छूने की सबकी होती,
चन्द ही लोग हवाओं का रुख पकड़ते हैं
चलो गुमनाम कहीं दूर जा के सो जाएँ,
यहाँ तो कब्र के मुर्दे भी शोर करते हैं
-रघुनाथ प्रसाद
Tuesday, June 23, 2009
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चलो गुमनाम कहीं दूर जा के सो जाएँ,
ReplyDeleteयहाँ तो कब्र के मुर्दे भी शोर करते हैं
bahut hi sundar bhav. badhai.