कई सुराख़ नज़र आ रहे सफीने में ।
ख्वाब साहिल का मगर पाल रहे सीने में।
तिरी नज़र को यार लग गई नज़र किसकी,
लगी तलाशने दानिस्तगी कमीने में।
चलो उतर के जरा हाथ पाँव तो मारें,
कोई मानी नहीं दहशत की साँस जीने में।
कौन कहता है बेबसी है, बेसहारे हैं,
अभी दमख़म है बहुत खून में, पसीने में।
जरूरी तो नहीं हम भी उसी राह चलें,
बानाएं रास्ता मौजों के तल्ख़ सीने में।
कुतुबनुमा न सही कुत्ब रहनुमा होगा,
जुनूननो जज्बा अगर आदमी के सीने में।
हो गए तार तार पाल ये बदल डालो,
वक्त जाया न करो, बार बार सीने में।
चलो माना की यूँ 'गुमनाम' हीं फना होंगे,
नहीं पैमाना गिनो यार कभी पीने में।
- रघुनाथ प्रसाद
तिरी नज़र को यार लग गई नज़र किसकी,
लगी तलाशने दानिस्तगी कमीने में।
चलो उतर के जरा हाथ पाँव तो मारें,
कोई मानी नहीं दहशत की साँस जीने में।
कौन कहता है बेबसी है, बेसहारे हैं,
अभी दमख़म है बहुत खून में, पसीने में।
जरूरी तो नहीं हम भी उसी राह चलें,
बानाएं रास्ता मौजों के तल्ख़ सीने में।
कुतुबनुमा न सही कुत्ब रहनुमा होगा,
जुनूननो जज्बा अगर आदमी के सीने में।
हो गए तार तार पाल ये बदल डालो,
वक्त जाया न करो, बार बार सीने में।
चलो माना की यूँ 'गुमनाम' हीं फना होंगे,
नहीं पैमाना गिनो यार कभी पीने में।
- रघुनाथ प्रसाद
No comments:
Post a Comment