बहुत लंबे अंतराल तक सभी सुभेच्छु बंधुओं के साथ जुड़ने से वंचित रहने का कारन अस्वस्थता एवं आलस्य मात्र रहा । आगे जब तक शरीर साथ देगा, आप सभी बंधुओं से जुड़े रहने का प्रयास करता रहूँगा क्योंकि अपना तो संकल्प है.......
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झिलमिलाये दीप, लौ की रोशनी कामने न पाए ।
चल रही है साँस जब तक, साधना थमने न पाए ।
मानता यह कार्य दुष्कर, यातनाओं से भरा है ।
क्रांति पथ का सजग प्रहरी, कंटकों से कब डरा है ?
विष्व में समभाव की परिकल्पना न डगमगाए । चल रही.....
है देख अत्याचार को, मुहँ फेर लेना तो सरल ।
हां, भूल निज अधिकार को, चुपचाप पी ले क्यों गरल ।
लेखनी निष्पक्ष निर्भय, चेतना मरने न पाए । चल रही.....
मेघ से ढक जाये नभ, कड़के हज़ारों बिजलियाँ ।
कठिन झंझावात, मुसलाधार बरसें बदलियाँ ।
हृदय में जो दीप जलता, आस का, बुझने न पाए । चल रही.....
वंचना उपलब्धि की छलती रही, छलती रहेगी ।
सोचना क्यों, स्वार्थ में अन्धी दुनियाँ क्या कहेगी ।
कर्म से बस नेह, फल की कामना छलने न पाए । चल रही.....
कह सकें निर्बन्ध जो, कहती है कानों में हवायें,
या भटकते धुन्ध में, सहमे परिन्दों की सदायें,
धार हो अभिव्यक्ति में, संवेदना कामने न पाए । चल रही.....
-रघुनाथ प्रसाद
Wednesday, September 16, 2009
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aapkre punaraagaman par swagat,
ReplyDeleteचल रही है साँस जब तक साधना थमने न पाए
झिलमिलाती दीप की लौ ,रौशनी कमने न पाए ।
मानता यह कामदुष्कर ,यातनायों से भरा है
क्रांति पथ का सजग प्रहरी कंटकों से कब डरा है
behatareen, himmat badhane wali rachna ke liye badhai.