Wednesday, September 30, 2009

"तुम वफ़ा के नाम पर"

तुम वफ़ा के नाम पर, कोरी कसम खाते रहे ।
हम हकीकत की गली में, ठोकरें पाते रहे ।

बद से बदतर दिन-ब-दिन, होता रहा हाले मरीज़,
आप बस झोला लिए, आते रहे जाते रहे ।

तान सीना कह गए, घर-घर जलाएँगे चराग
और खुद ही रोशनी से, आप घबराते रहे ।

ढल चुकी है रात कलि, छंट रही अब तीरगी,
कुत्ब को तारा सुबह का, आप बतलाते रहे ।

फेंक नीचे हड्डियाँ, खाते रहे शाही कवाब,
लड़ रहे कुत्ते गली के, आप मुस्काते रहे ।

चोट उतनी ही सही, जो काबिले बर्दाश्त हो,
अब नहीं मुमकिन न चीखें, ज़ख्म सहलाते रहे ।

सड़ चुके उस घाव पर, पट्टी चढ़ाना था फिजूल,
नश्तरे जर्राह से 'गुमनाम' कतराते रहे ।

-रघुनाथ प्रसाद

2 comments:

  1. आपको और आपके परिवार को दीपावली की मंगल कामनाएं.

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