तुम वफ़ा के नाम पर, कोरी कसम खाते रहे ।
हम हकीकत की गली में, ठोकरें पाते रहे ।
बद से बदतर दिन-ब-दिन, होता रहा हाले मरीज़,
आप बस झोला लिए, आते रहे जाते रहे ।
आप बस झोला लिए, आते रहे जाते रहे ।
तान सीना कह गए, घर-घर जलाएँगे चराग
और खुद ही रोशनी से, आप घबराते रहे ।
ढल चुकी है रात कलि, छंट रही अब तीरगी,
कुत्ब को तारा सुबह का, आप बतलाते रहे ।
और खुद ही रोशनी से, आप घबराते रहे ।
ढल चुकी है रात कलि, छंट रही अब तीरगी,
कुत्ब को तारा सुबह का, आप बतलाते रहे ।
फेंक नीचे हड्डियाँ, खाते रहे शाही कवाब,
लड़ रहे कुत्ते गली के, आप मुस्काते रहे ।
लड़ रहे कुत्ते गली के, आप मुस्काते रहे ।
चोट उतनी ही सही, जो काबिले बर्दाश्त हो,
अब नहीं मुमकिन न चीखें, ज़ख्म सहलाते रहे ।
सड़ चुके उस घाव पर, पट्टी चढ़ाना था फिजूल,
नश्तरे जर्राह से 'गुमनाम' कतराते रहे ।
-रघुनाथ प्रसाद
अब नहीं मुमकिन न चीखें, ज़ख्म सहलाते रहे ।
सड़ चुके उस घाव पर, पट्टी चढ़ाना था फिजूल,
नश्तरे जर्राह से 'गुमनाम' कतराते रहे ।
-रघुनाथ प्रसाद
bahut khoob behatareen rachna, badhaai.
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को दीपावली की मंगल कामनाएं.
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