दुर्योधन चोरी किये भीष्म हो लिये साथ ।
दुर्जन के संग होम में ,ब्यर्थ जलाये हाथ ।
दुर्जन के संग होम में ,ब्यर्थ जलाये हाथ ।
मन क्रोधित तब कंठ से ,मधुर वचन बिलगाय ।
गरम तवा पर जल पड़े ,बने भाप उड़ जाय । वाणी में वाणी बसे ,जो मन शीतल होय ।
कमल पात पर डोलता ,बनकर मोती तोय । लाभ दिखे कुछ कथन से ,कहिये तब निज बात ।
पर्वत पर ना जल थमे ,मेघ झरे दिन रात । चाटुकार सेवक जहाँ ,मूरख के सर ताज ।
एक भाव बिकते वहां ,खाजा भाजी नाज । कर थामे ममता सुखी ,बालक पा मुंह कौर ।
देने का सुख और है ,पाने का सुख और । परिभाषित सुख दुःख सदा ,बहुरुपिया पर्याय ।
सब की अपनी सोच है ,सब की अपनी राय । गोल चाँद रोटी दिखे ,सद्यः करें उपाय ।
जठर अगन दहके जभी ,दावानल बन जाय । रक्त दान कोई करे ,कोई खून बहाय ।
कद ऊंचा किसका भला ,कोई तो बतलाय । ----------------------
रघुनाथ प्रसाद
nice
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