Thursday, January 14, 2010

आँसू तुम्हें नमन शतबार

तुम्हें नमन शतबार, आँसू! तुम्हें नमन शतबार।
बूंद बूंद मोती का दाना, था कितना अनमोल खज़ाना।
पिरो लिये गीतों में चुन चुन, वह अनुपम उपहार।
आँसू तुम्हें नमन शतबार।

तुम्हें नमन शतबार बाधा, तुम्हें नमन शतबार।
जब जब खड़े हुए तुम तनकर, कठिन चुनौती संमुख बनकर।
दृढ़तर हुआ आत्मबल, धीरज, साहस का संचार।
आँसू तुम्हें नमन शतबार।

तुम्हें नमन शतबार, निंदक! तुम्हें नमन शतबार।
तिरछी बाँकी तेरी बोली, अंतर्मन की आँखे खोली।
अनदेखे दुर्गुण थे जितने, तत्क्षण लिया सुधार।
निंदक! तुम्हे नमन शतबार।

तुम्हें नमन शतबार, दुर्दिन तुम्हें नमन शतबार।
दुःख से समझौता करवाया, थोड़े में जीना सिखलाया।
हुए लचीले, सुर में बजते,मन वीणा के तार।
दुर्दिन! तुम्हें नमन शतबार।

तुम्हें नमन शतबार, विपदा! तुम्हें नमन शतबार।
तुमने जितनी बार जलाया, तप तप नया कलेवर पाया।
मैल जलगए मन कंचन के, आया नया निखार।
विपदा! तुम्हें नमन शतबार।
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रघुनाथ प्रसाद

4 comments:

  1. आंसू,बाधा,निंदक,दुर्दिन,विपदा जैसे दुःख के कारण इंसान को कितना कुछ दे जाते हैं यह एक अकेली कविता हमें सिखा जाती है.
    ..आपको भी शत-शत नमन.

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  2. आंसुओं का सुन्दर वर्णन
    बहुत बहुत आभार

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  3. baba, bahut achhi lagi ye vali kavita.

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