Friday, July 23, 2010

uplabdhiyan :ak prashn

धरती सागर नभमंडल क्या
हम पहुंचे चाँद-सितारों तक
हम छान चुके निर्झर नदियाँ
जंगल हिमशिखर पहाड़ों तक .

अवनी ताल की गहराई से
खनिजों को खोद निकाला है
फिर जाँच-परख ,संशोधित कर
इच्छित सांचों में ढाला है .

सदियों पहले ,सागर तल की
गहराई तक हम झांक चुके
रत्नाकर के तहखाने में
क्या-क्या संचित हम आँक चुके .

क्या जीव-जंतु क्या वनस्पति
संरचना सब की जान गए .
हर तंतु-तंतु की जटिल क्रिया
जांची विधिवत ,पहचान गए .

शीशे की नलिकाओं में हम
मानव का बीज उगा सकते
पौधों की कलम कवन पूछे
हम अपनी कलम उगा सकते .

हम वायु वेग से सफ़र करें
बिजली से बातें करते हैं
पल भर में विश्व मिटाने की
क्षमता का भी दम भरते हैं .

वैचित्र्य प्रकृति का अनावृत
करके देखा परखा जाना
पर हे मानव तूने अब तक
क्या स्वयं स्वयं को पहचाना ?

       रघुनाथ प्रसाद

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