Friday, September 24, 2010

वसंत

प्रातः की गुन-गुनी धूप में सिहरन का एहसास .
ले संदेसा पछेया आई ,आ पहुंचा मधुमास
पादप के पीले पत्ते अब ,गीत फागुनी गाते.
डाल छोड़ कर नाच हवा में ,धरती पर सो जाते .
टेंसू का गदराया यौवन ,गाल हो गए लाल ,
अमराई में बौर लदगए ,झुकी आम की डाल .
सरसों में दाने भर आये ,फुनगी पर कुछ फूल .
अलसी सर पर कलसी थामे ,राह गई ज्यों भूल .
खड़ा मेंड़ पर लिये लकुटिया ,कृषक हाथ कटी थाम .
झूम-झूम गेहूं की बाली ,झुक-झुक करे सलाम .
पछेया तो हो गई बावरी ,करने लगी ठिठोली .
धरती पर से धूल उठाकर ,लगी खेलने होली .
दंभ ,द्वेष ,मनमैल,भेद ,जलगए होलिका संग ,
गले मिले पुलकित आह्लादित ,भाँति-भाँति के रंग
मिटा गया आयु की सीमा ,कैसा यह ऋतुराज .
होली के मदमस्त ताल पर ,झूम रहे सब आज .
दंतहीन पिचके गालों पर पसरा रंग गुलाबी ,
जाने क्या सन्देश दे गया ,यह मधुमास शराबी .

              रघुनाथ प्रसाद

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