थकने लगे अभी से क्योंकर, चंचल आतुर पाँव ?
अभी तुमे कोसों जाना हैं, अभी दूर है गाँव |
.......... मुसाफिर अभी दूर है गाँव |
कब निकला सूरज का गोला, कब मस्तक पर आया |
चलता रहा पथिक तू धुन में, कहाँ ध्यान दे पाया |
सुरसा सी बढती परछाई, अरु तरुओं की छाँव |
.......... मुसाफिर अभी दूर है गाँव |
दम उखड़ा पग पनही टूटी, दुखती रही बिवाई |
जोड़-जोड़ में दर्द पिरोती, सिहर-सिहर पुरवाई |
रैन बसेरा उन्मुख पंछी, गूंजे कलरव काँव |
.......... मुसाफिर अभी दूर है गाँव |
देख पथिक उस नाविक को, जो नाव लिये मझधार |
धैर्य डोर से पाल संभाले, साहस से पतवार |
गाता गीत सुरीले स्वर में, खेता जाता नाव |
.......... मुसाफिर अभी दूर है गाँव |
दीपक का है मोल तभी तक, जब तक जलती बाती |
ठहर गयी जिस ठौर नदी, वह नदी नहीं रह जाती |
चलना ही जीवन कहलाये, मौत जहाँ ठहराव |
.......... मुसाफिर अभी दूर है गाँव |
-रघुनाथ प्रसाद
Sunday, September 26, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बहुत ही सुन्दर कविता........
ReplyDelete