Sunday, September 26, 2010

"अभी दूर है गाँव"

थकने लगे अभी से  क्योंकर, चंचल आतुर पाँव ?
अभी तुमे कोसों जाना हैं, अभी दूर है गाँव |
.......... मुसाफिर अभी दूर है गाँव |

कब निकला सूरज का गोला, कब मस्तक पर आया |
चलता रहा पथिक तू धुन में, कहाँ ध्यान दे पाया |
सुरसा सी बढती परछाई, अरु तरुओं की  छाँव |
.......... मुसाफिर अभी दूर है गाँव |

दम उखड़ा पग पनही टूटी, दुखती रही बिवाई |
जोड़-जोड़ में दर्द पिरोती, सिहर-सिहर पुरवाई |
रैन बसेरा उन्मुख पंछी, गूंजे कलरव  काँव |
.......... मुसाफिर अभी दूर है गाँव |

देख पथिक उस नाविक को, जो नाव लिये मझधार |
धैर्य डोर से पाल संभाले, साहस से पतवार |
गाता गीत सुरीले स्वर में, खेता जाता नाव |
.......... मुसाफिर अभी दूर है गाँव |

दीपक का है मोल तभी तक, जब तक जलती बाती |
ठहर गयी जिस ठौर नदी, वह नदी नहीं रह जाती |
चलना ही जीवन कहलाये, मौत जहाँ ठहराव |
.......... मुसाफिर अभी दूर है गाँव |

-रघुनाथ प्रसाद       

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