कैसा तेरा गाँव साथिया,कैसा तेरा गाँव?
कहीं फसल सूखे मुर्झाए,कहीं बहाए बाढ़.
कहीं जलातीं लू की लपटें,कहीं ठंढ की मार.
कहीं काँपती थर-थर गुरवत,जलता कहीं अलाव .
साथिया ..........
नदियाँ स्वयं नीर पी जाएँ,तरुवर फल खा जाएँ .
भूखे प्यासे पशु परिंदे,नाहक आस लगाए .
बूढ़ा बरगद ओढ़े बैठा,अपनी शीतल छाँव .
साथिया ..........
यमन,विलावल,अहिर भैरवी,ध्रुपद,राग दरबारी .
कजरी,आल्हा,बिरहा,ठुमरी,तोड़ी,राग पहाड़ी .
होड़ लगी है ताल ठोककर,सरगम में टकराव .
साथिया ..........
देती क्या सन्देश अराजक भेद-भाव की भाषा .
ध्वज,परचम,डंडे पर चढ़कर,बन्दर करें तमाशा.
गली-गली विस्फोट धमाका,चौराहे पथराव .
साथिया ..........
धरती खोदे महल उठाये,ये कैसी चतुराई ?
जितना ऊँचा उठा मुडेरा,उतनी गहरी खाई .
देखो कहीं कहर ना ढाए,मौसम का बदलाव .
साथिया ..........
रघुनाथ प्रसाद
Saturday, September 25, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment