Sunday, September 26, 2010

गीत

जिस दिन से हो गई परायी, रिश्तों की पहिचान |
रोते-रोते विदा हो गई, होठों से मुस्कान |

चलते-फिरते लोग लगें ज्यों, हिलती-डुलती छाया |
औपचारिक संवाद रसीले, हृदय हीन है काया |
माया की ऊंगली में डोरी, कठपुतली इंसान -
रोते-रोते विदा हो गई, होठों से मुस्कान |

जितना जोड़े सुख के साधन, सुख से उतनी दूरी |
चप्पन भोग सजी थाली, पर ललचाती मजबूरी |
क्षणिक स्वांस के अंकगणित में, उलझा मन नादान -
रोते-रोते विदा हो गई, होठों से मुस्कान |

तोषक तकिया, पलंग मसहरी, नींद कहाँ से लाये |
चिंता की गठरी लादे मन, भटके राह न पाये |
बंद सभी खिड़की दरवाज़े, शंकित सहमा प्राण -
रोते-रोते विदा हो गई, होठों से मुस्कान |

जिस परिकल्पित सुख के पीछे, निशदिन दौड़े भागे |
पास पहुँच कर पाता उसको, दूर खड़ा वह आगे |
कस्तूरी मृग सा चंचल मन, खुद से ही अनजान -
रोते-रोते विदा हो गई, होठों से मुस्कान |

- रघुनाथ प्रसाद 

2 comments:

  1. bahoot gahre bhav hai.... behad sunder abhiyakti...

    ReplyDelete
  2. भाई जी
    सादर नमस्कार
    गीत
    गीत की एक एक पंक्ती में ठोस सच का विवरण

    ReplyDelete