सिसकती धरा, अश्रु आँचल भिंगोते |
विदा हो रही यामिनी रोते-रोते |
खिसकने लगे मुहँ छिपाते सितारे |
हुआ चाँद धूसर, शितिज को निहारे |
परिंदे चहकने लगे, छोड़ खोंते |
विदा हो रही यामिनी रोते-रोते |
अकेला गगन में खड़ा शुक्र तारा |
मुखर हो चला है जलाशय किनारा |
छलकते घड़े अंग चूनर भिंगोते |
विदा हो रही यामिनी रोते-रोते |
दिये बुझ गए अंततः झिलमिला के |
सँजोया तरल स्नेह सारा लुटा के |
लगी भागने जिंदगी भोर होते |
विदा हो रही यामिनी रोते-रोते |
दमकने लगा हिम शिखर का कँगूरा |
बिछा स्वर्ण चादर, छुपा रंग भूरा |
उड़ा हंस लहरों पे मोती पिरोते |
विदा हो रही यामिनी रोते-रोते |
Sunday, September 26, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
भाई जी
ReplyDeleteसादर नमस्कार
बहुत दर्द है आपकी कविता में