गुलामी गई छोड़ अपना कफ़न,
खुशामद किये जा रहे आदतन।
वही शामे मुजरा, वही मयकशी,
नए सिर्फ चहरे, पुराना चलन।
मिट्टी तो बदली, न बदला वो साँचा,
खुले पाँव में बेड़ियों की चुभन।
वही ढोल डमरू, नया बस मदारी,
सदी से जमूरे का नंगा बदन।
बाँटे वो कल, आज हम बाँटते,
सियासत निभाए, पुराना चलन।
वही रस्मे डाली, सलामी व तोहफ़ा,
सजाने को मंडप, उजाड़े चमन।
कब्ले आजादी, बुने ख्वाब जितने,
गुमनाम की डायरी में दफन।
खुशामद किये जा रहे आदतन।
वही शामे मुजरा, वही मयकशी,
नए सिर्फ चहरे, पुराना चलन।
मिट्टी तो बदली, न बदला वो साँचा,
खुले पाँव में बेड़ियों की चुभन।
वही ढोल डमरू, नया बस मदारी,
सदी से जमूरे का नंगा बदन।
बाँटे वो कल, आज हम बाँटते,
सियासत निभाए, पुराना चलन।
वही रस्मे डाली, सलामी व तोहफ़ा,
सजाने को मंडप, उजाड़े चमन।
कब्ले आजादी, बुने ख्वाब जितने,
गुमनाम की डायरी में दफन।
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रघुनाथ प्रसाद
रघुनाथ प्रसाद
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार