Thursday, January 7, 2010

जीना सिखा दिया

कैसे करूँ अदा मैं, ऐ दोस्त शुक्रिया ।
अंदाजे सफ़र तू ने ,जीना सिखा दिया।

तनहाई काटती न ,करे शोर -गुल तबाह ,
ऐसी लगन लगी ,दीवाना बना दिया ।

गुड़ की मिठास क्या है ,उस दिन पता चला ,
जिस रोज़ यार तू ने ,मिर्च खिला दिया

आता है तरस उन पे ,उनके मिजाज पे ,
जिनकी वफा ने मुझको ,मुफलिस बना दिया

आवाज नहीं आती ,अब उस मचान से ,
इस सिरफिरे ने सहसा ,सीढी हटा लिया ।

वो रास्ता नहीं थी जिस राह चल पड़े ,
बढ़ने लगे कदम तो ,रास्ता बना लिया ।

'गुमनाम' बहे आंसू ,लगते रहे ख़ुशी के
जज्बा -ऐ -सफ़र तू ने ,इतना हंसा दिया ।

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रघुनाथ प्रसाद

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