Saturday, June 5, 2010

कहीं बरसात का पानी जरूर ठहरा है

कहीं बरसात का पानी जरूर ठहरा है.
तमाम वादियों में तिशनगी का पहरा है.

हुई है कैद चाँदनी किसी की मुट्ठी में,
चाँद निकला है मगर, स्याह रात कोहरा है .

कहीं उजड़ा है चमन बागवां के हाथों से,
किसी के सर पे सजा शानदार सेहरा है.

थकीं आजान,सबद ,शंख भजन की चीखें,
किसी के बंद दरीचे हैं ,कोई बहरा है.

लगेगा वक्त बहुत यार ,इसके भरने में,
किसी अजीज का तोहफ़ा है, जख्म गहरा है.

अदब से लीजिए प्रसाद उनकी मर्जी का,
जमीं पे खौफ का साया, फलक पे पहरा है.

- रघुनाथ प्रसाद

2 comments:

  1. बहुत अच्छी गज़ल. मतले को पढ़कर तो दुष्यंत कुमार की याद आ गई.

    यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं सभी नदियाँ
    मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा

    इस शेर का दर्द तो बस महसूस किया जा सकता है..

    लगेगा वक्त बहुत यार ,इसके भरने में,
    किसी अजीज का तोहफ़ा है, जख्म गहरा है.

    मक्ते में 'प्रसाद' का प्रयोग लाजवाब है.
    ...वाह!

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  2. Raghunath Sahab,
    Bahut hi shaandaar ghazal hai aapki...maza aa gaya
    लगेगा वक्त बहुत यार ,इसके भरने में,
    किसी अजीज का तोहफ़ा है, जख्म गहरा है.
    Surinder Ratti

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