पीर रिसती हृदय के हर तंतु से तब तिलमिला के .
गीत गाता हूँ चमन के पंछियों से सुर मिला के .
तार वीणा के खिंचे तब मीड का विस्तार होता ,
तार पर मिजराब के आघात से झंकार होता ,
थाप खा मिरदंग बजता ,ताल में सुर लय मिला के .
गीत गाता हूँ चमन के पंछियों से सुर मिला के
बांसुरी के हृदय में इतने अगर ना छेद होते ,
टेर में संगीत मधुरिम किस तरह वादक पिरोते .
बांस नलिका साज बनती ,तप्त छड से तन जला के .
गीत गाता हूँ चमन के पंछियों से सुर मिला के .
पीर अपनी या पराई ,या विरह की वेदनाएं ,
या विषम परिवेश की ,संचित गहन संवेदनाएं .
युग समय का गीत गढ़ती अश्रु से दीपक जला के .
गीत गाता हूँ चमन के पंछियों से सुर मिला के .
- रघुनाथ प्रसाद
Tuesday, June 29, 2010
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achchhi prastuti ........shabda sanyojan bahut achchha
ReplyDeleteबांसुरी के हृदय में इतने अगर ना छेद होते ,
ReplyDeleteटेर में संगीत मधुरिम किस तरह वादक पिरोते .
bahut hee badhiya prastutee, jeevan mei aaye dukho ka yathharthh...