तेल सारा जल गया, भींगी हुई बाती तो है.
टिमटिमाती लौ सही वह, राह दिखलाती तो है.
एक पत्ता भी दरख्तों का, नहीं गिरता यहाँ,
लोग कहते तेज आंधी, बारहा आती तो है.
आज भी ठंढा है चुल्ल्हा, लौट कर बिल्ली गई,
आ चलो अब सो पड़े, माँ लोरिआं गाती तो है.
वो गए सो फिर न आये, लोग समझाते रहे,
चिट्ठियों के मार्फ़त, उनकी दुआ आती तो है.
फैसला इजलास का, इक उम्र में मुमकिन नहीं,
शुक्र है हर माह इक, तारीख पड़ जाती तो है.
गम नहीं जो हादसे में, शहर के कुछ घर जले,
सेंकने को रोटियां, कुछ आग मिल जाती तो है.
आप मादरजाद नंगा हो गए तो क्या हुआ?
बेहयाई देख कर, खुद शर्म शर्माती तो है.
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-रघुनाथ प्रसाद
Wednesday, June 30, 2010
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"बेहतरीन...क्या बात है..."
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