लोकतंत्र के हाट में, लोक लाज नीलाम.
जितना खोटा माल है, उतना ऊँचा दाम.
मोल तोल की दौड़ में, बिन पटरी की रेल.
ज्ञानी जन कहते इसे, राजनीति का खेल.
माया की बरसात है, दोनों हाथ बटोर.
हाथी फिरे बाजार में, स्वान मचाएं शोर.
डाल डाल पर शोर है, होगा पुनः चुनाव.
आहत पंछी नीड़ में, सहलाते हैं घाव.
गौरैया किसको चुने, किसके सर हो ताज.
इस डाली घुग्घू डटे, उस डाली पर बाज.
- रघुनाथ प्रसाद
Friday, June 25, 2010
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सभी दोहे लाजवाब हैं.
ReplyDeleteगौरैया किसको चुने, किसके सर हो ताज.
इस डाली घुग्घू डटे, उस डाली पर बाज.
...लोकतंत्र पर इससे तीखा व्यंग्य और क्या होगा भला..!