Monday, December 7, 2009

दोहे

हाथ जल गए होम में ,परिक्रमा में पांव ।
चीर हरण की होड़ में ,पटवर्धन का गांव ।

आबादी सुरसा हुई ,आमद कृष्ण मयंक ।
शुक्ल पक्ष का चन्द्रमा , महगाई का अंक ।

पंडितजी बतला रहे ,हुए शनिश्चर बाम ।
दान हवन पूजन करें ,तभी बनेगा काम ।

देश प्रेम वाणी बसे ,देशद्रोह हिय बीच ।
ख्याति प्रतिष्ठा पा रहे ,ऐसे ही नर नीच ।

उसने धन -दौलत दिए ,तुमने थोड़ा प्यार ।
धन -दौलत आए गए ,अक्षुण लघु उपहार ।

क्रोध जगावे मुर्खता ,हरे विवेक विचार ।
जीत लिया जो क्रोध को ,कभी न होगी हार ।

हृदय बसा मत्सर वैरी ,छुप -छुप करता वार ।
जला नित्य धीरे -धीरे ,तन -मन करता छार ।
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रघुनाथ प्रसाद .

2 comments:

  1. सभी दोहे उत्तम कोटि के हैं
    इन्हें तो याद करना पड़ेगा-
    आबादी सुरसा हुई ,आमद कृष्ण मयंक ।
    शुक्ल पक्ष का चन्द्रमा , महगाई का अंक ।
    उसने धन -दौलत दिए ,तुमने थोड़ा प्यार ।
    धन -दौलत आए गए ,अक्षुण लघु उपहार ।

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