बाँध रक्खा हवा ,आब का बुलबुला ।
सौ बरस जी लिए ,कुछ दिए ना लिए ,
आप आए गए कब ,पता ना चला ।
उसने पूछा महज खैरियत प्यार से ,
सरहदें तोड़ दी ,मिट गया फासला ।
बात इतनी सी थी ,कौन औअल खुदा ,
हाय !दैरो हरम ,बन गया कर्बला ।
एक चिंगारी नफरत की अदना सही ,
आज शोला हुई हम जले घर जला ।
अमन 'गुमनाम 'है हाशिये पे खड़ा ,
आप आयें इधर तो ,बने काफिला ।
रघुनाथ प्रसाद
हम शामिल हैं, काफिले में. सुंदर रचना.
ReplyDeletepriya Pankaj ji,
ReplyDeletekaafile me aap ka swagat hai.danyabad.
Raghunath Prasad.
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