Tuesday, December 1, 2009

एक पल को जिया

एक पल को जिया ,देखिये हौसला ।
बाँध रक्खा हवा ,आब का बुलबुला ।

सौ बरस जी लिए ,कुछ दिए ना लिए ,
आप आए गए कब ,पता ना चला ।

उसने पूछा महज खैरियत प्यार से ,
सरहदें तोड़ दी ,मिट गया फासला ।

बात इतनी सी थी ,कौन औअल खुदा ,
हाय !दैरो हरम ,बन गया कर्बला ।

एक चिंगारी नफरत की अदना सही ,
आज शोला हुई हम जले घर जला ।

अमन 'गुमनाम 'है हाशिये पे खड़ा ,
आप आयें इधर तो ,बने काफिला ।
...........................

रघुनाथ प्रसाद

2 comments:

  1. हम शामिल हैं, काफिले में. सुंदर रचना.

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  2. priya Pankaj ji,

    kaafile me aap ka swagat hai.danyabad.

    Raghunath Prasad.
    email address/rnpjsr@gmail.com.

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