Thursday, December 31, 2009

आप आते बेनकाब

इस तरह कोई यकीं ,कैसे करे कहिये जनाब ।
मैं दरे दिल खोल देता ,आप आते बेनकाब ।

जबतलक मतलब रहा ,आते रहे कितने हबीब ,
कौन कब आया गया कब ,कौन रखता ये हिसाब ।

फूल मुरझाया तो भंवरे लग लिए पतली गली ,
फेंक दी जाती सुराही ,ख़त्म होते ही शराब ।

पास ले -दे के बचा अब ,इक अदद कुरता इजार ,
है अगर ख्वाहिश तो मिलिए ,बे तकल्लुफ बे हिजाब ।

रूबरू था आइना अब ,दरमियाँ हस्ती दीवार ,
अब तसब्बुर में नुमाया ,हुस्न अपना माहताब ।

किस तरह मापे कोई अब ,उम्र की गहराइयाँ ,
राजदा हो स्याह जुल्फों का ,अगर नकली खिजाब ।

वक्त ने करवट लिया तो ,बन गया प्यादा वजीर ,
हांकते तांगा गली में ,जिनके परदादा नवाब ।

गर मिले फुर्सत कभी तो ,खोल कर पढ़ लीजिये ,
रख गया 'गुमनाम 'कोई जीस्त की पहली किताब ।

-०-
रघुनाथ प्रसाद

2 comments:

  1. फूल मुरझाया तो भंवरे लग लिए पतली गली ,
    फेंक दी जाती सुराही ,ख़त्म होते ही शराब ।

    पास ले -दे के बचा अब ,इक अदद कुरता इजार ,
    है अगर ख्वाहिश तो मिलिए ,बे तकल्लुफ बे हिजाब ।


    wah wah behatareen.

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