इस तरह कोई यकीं ,कैसे करे कहिये जनाब ।
मैं दरे दिल खोल देता ,आप आते बेनकाब ।
जबतलक मतलब रहा ,आते रहे कितने हबीब ,
कौन कब आया गया कब ,कौन रखता ये हिसाब ।
फूल मुरझाया तो भंवरे लग लिए पतली गली ,
फेंक दी जाती सुराही ,ख़त्म होते ही शराब ।
पास ले -दे के बचा अब ,इक अदद कुरता इजार ,
है अगर ख्वाहिश तो मिलिए ,बे तकल्लुफ बे हिजाब ।
रूबरू था आइना अब ,दरमियाँ हस्ती दीवार ,
अब तसब्बुर में नुमाया ,हुस्न अपना माहताब ।
किस तरह मापे कोई अब ,उम्र की गहराइयाँ ,
राजदा हो स्याह जुल्फों का ,अगर नकली खिजाब ।
वक्त ने करवट लिया तो ,बन गया प्यादा वजीर ,
हांकते तांगा गली में ,जिनके परदादा नवाब ।
गर मिले फुर्सत कभी तो ,खोल कर पढ़ लीजिये ,
रख गया 'गुमनाम 'कोई जीस्त की पहली किताब ।
-०-
रघुनाथ प्रसाद
Thursday, December 31, 2009
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फूल मुरझाया तो भंवरे लग लिए पतली गली ,
ReplyDeleteफेंक दी जाती सुराही ,ख़त्म होते ही शराब ।
पास ले -दे के बचा अब ,इक अदद कुरता इजार ,
है अगर ख्वाहिश तो मिलिए ,बे तकल्लुफ बे हिजाब ।
wah wah behatareen.
Bahut bahut aabhar
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