Thursday, December 24, 2009

"कौन थामेगा हाथ उम्र भर के लिए"

कौन थामेगा यहाँ हाथ उम्र भर के लिए ।
लगा सवाल अजूबा सा, इस शहर के लिए ।
लोग कपड़े की तरह, यार बदल लेते हैं,
फिक्र करता है कौन, आज हमसफ़र के लिए ।

अब तो रिश्ते भी बदलने लगे मौसम की तरह,
तलाश लेंगे कहीं और जगह घर के लिए ।

आदमी आदमी कहाँ रहा, मशीन हुआ,
दिलो-जज्बात जरुरी नहीं बशर के लिए ।

आ गया कल अगर तो कल का, कल सोचेंगे,
आज तो सोचने दो, सिर्फ आज भर के लिए ।

वही अल्फाज हैं मानी बदल गए लेकिन,
नए अल्फाज तलाशें, सही खबर के लिए ।

भले हो मिलकियत 'गुमनाम' का हद्दे आलम,
फकत दो गज जमीं है, आखिरी सफ़र के लिए ।

-रघुनाथ प्रसाद

4 comments:

  1. "भले हो मिलकियत'गुमनाम 'का हद्दे आलम ,
    फकत दो गज जमीं है ,आखिरी सफ़र के लिए । "

    बहुत ही भावपूर्ण रचना ......बधाई !!

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  2. अब तो रिश्ते भी बदलने लगे मौसम की तरह ,
    तलाश लेंगे कहीं और जगह घर के लिए ।
    ..
    आगया कल अगर तो कल का,कल सोचेंगे ,
    आज तो सोचने दो ,सिर्फ आज भर के लिए ।
    ...shandar gajal....amulya sher...vah!

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  3. बहुत अच्छी रचना
    बहुत -२ आभार

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