कौन थामेगा यहाँ हाथ उम्र भर के लिए ।
लगा सवाल अजूबा सा, इस शहर के लिए ।
लगा सवाल अजूबा सा, इस शहर के लिए ।
लोग कपड़े की तरह, यार बदल लेते हैं,
फिक्र करता है कौन, आज हमसफ़र के लिए ।
अब तो रिश्ते भी बदलने लगे मौसम की तरह,
तलाश लेंगे कहीं और जगह घर के लिए ।
आदमी आदमी कहाँ रहा, मशीन हुआ,
दिलो-जज्बात जरुरी नहीं बशर के लिए ।
आ गया कल अगर तो कल का, कल सोचेंगे,
आज तो सोचने दो, सिर्फ आज भर के लिए ।
वही अल्फाज हैं मानी बदल गए लेकिन,
नए अल्फाज तलाशें, सही खबर के लिए ।
भले हो मिलकियत 'गुमनाम' का हद्दे आलम,
फकत दो गज जमीं है, आखिरी सफ़र के लिए ।
फिक्र करता है कौन, आज हमसफ़र के लिए ।
अब तो रिश्ते भी बदलने लगे मौसम की तरह,
तलाश लेंगे कहीं और जगह घर के लिए ।
आदमी आदमी कहाँ रहा, मशीन हुआ,
दिलो-जज्बात जरुरी नहीं बशर के लिए ।
आ गया कल अगर तो कल का, कल सोचेंगे,
आज तो सोचने दो, सिर्फ आज भर के लिए ।
वही अल्फाज हैं मानी बदल गए लेकिन,
नए अल्फाज तलाशें, सही खबर के लिए ।
भले हो मिलकियत 'गुमनाम' का हद्दे आलम,
फकत दो गज जमीं है, आखिरी सफ़र के लिए ।
-रघुनाथ प्रसाद
"भले हो मिलकियत'गुमनाम 'का हद्दे आलम ,
ReplyDeleteफकत दो गज जमीं है ,आखिरी सफ़र के लिए । "
बहुत ही भावपूर्ण रचना ......बधाई !!
behatareen.
ReplyDeleteअब तो रिश्ते भी बदलने लगे मौसम की तरह ,
ReplyDeleteतलाश लेंगे कहीं और जगह घर के लिए ।
..
आगया कल अगर तो कल का,कल सोचेंगे ,
आज तो सोचने दो ,सिर्फ आज भर के लिए ।
...shandar gajal....amulya sher...vah!
बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत -२ आभार