बड़ी मछलियाँ लिख रहीं ,छोटी की तकदीर ।
ध्यान लगा तट पर खड़ा ,बगुला आलमगीर ।
अंकुर को सहला रहा ,जड़ बारूदी गंध ।
खिलने से पहले लुटा ,कलिओं का मकरंद ।
लोकलाज शालीनता ,गयीं दूकान समेट।
जितना ऊँचा ओहदा ,उतना लंबा पेट ।
संसद में लगने लगा ,मछली का बाजार ।
हो हल्ला हुडदंग में ,लोकतंत्र लाचार ।
नई सदी ले आ गई ,पश्चिम से पैगाम ।
जितना छोटा आवरण ,उतना ऊँचा दाम ।
कहना था सो कह दिया ,करिए आप विचार ।
पोता कर्ज चुका रहा ,दादा लिए उधार ।
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रघुनाथ प्रसाद
Wednesday, December 2, 2009
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behatareen rachna. badhaai.
ReplyDeleteshukria,
ReplyDeletedohe bahut pasand aaye aur log uktane lage..bhi
दोहे भी खूबसूरत हैं
ReplyDeleteमैं आपके ब्लाग में फिर आउंगा