जब तक गंगा की लहरों में गूंजेगा स्वर कल-कल का ।
तब तक ही जीवित जन गन का सपना कल के जीवन का ।
कल के लिए कभी तो सोचें क्या होगा इस दुनिया का ।
हिम के बिना हिमालय अपना नंगा अगर खड़ा होगा ।
आनेवाली पीढ़ी अपनी बूंद-बूंद को तरसेगी ।
दूषित वायुमंडल का प्रतिफल इतना तगड़ा होगा ।
हमने ही खोदी यह खाई हम को ही भरना होगा ।
समय आ गया सब को मिलकर समुचित कदम उठाने का ।
-रघुनाथ प्रसाद
Thursday, November 26, 2009
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