Sunday, November 29, 2009

दास्ताने चमन

खुशबु न फूल में रही न खार में चुभन ।
अब यार दरअसल न रहा ये चमन चमन ।

वो गुलमुहर गुलाब सुर्ख ,ज़र्द हो गए ,
कोयल के कंठ में भी तल्खी छिछोरपन।
कलियाँ बिछीं जमीं पे डाली से टूट -टूट ,
कब तक संभाल पातीं बारूद की घुटन ।
हर शाख इक कफस है ,टहनी तनी गुलेल ,
खोलें न पंख दुबके ,परवाज आदतन ।

वो सरफरोश माली ,तारीख बन चुके ,
जिनको अजीज जान से हरदम रहा चमन ।

परवरदिगार मालिक ,इस बदनसीब का ,
ख़ुद बागवा लुटेरा ,फ़िर क्या करे चमन

'गुमनाम 'पैराहन रफू किए तमाम उम्र ,
तुर्बत पे किस लिए भला ये रेशमी कफ़न ।

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