खुशबु न फूल में रही न खार में चुभन ।
अब यार दरअसल न रहा ये चमन चमन ।
वो गुलमुहर गुलाब सुर्ख ,ज़र्द हो गए ,
कोयल के कंठ में भी तल्खी छिछोरपन।
कलियाँ बिछीं जमीं पे डाली से टूट -टूट ,
कब तक संभाल पातीं बारूद की घुटन ।
हर शाख इक कफस है ,टहनी तनी गुलेल ,
खोलें न पंख दुबके ,परवाज आदतन ।
वो सरफरोश माली ,तारीख बन चुके ,
जिनको अजीज जान से हरदम रहा चमन ।
परवरदिगार मालिक ,इस बदनसीब का ,
ख़ुद बागवा लुटेरा ,फ़िर क्या करे चमन
'गुमनाम 'पैराहन रफू किए तमाम उम्र ,
तुर्बत पे किस लिए भला ये रेशमी कफ़न ।
Sunday, November 29, 2009
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behatareen.
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