अशआर नहीं दोस्त, मुकम्मल बयान है ।
तस्वीर आज की यह, उसकी जुबान है ।
अब काफ़िले दलों के, गश्ती में चल पड़े,
दल दल में जिस्म अटका, आफत में जान है ।
वह बोलने लगा तो, बोले चला गया,
शायद नहीं, वो सच-मुच ही बेजुबान है ।
उस सिरफिरे को शायद, इतनी खबर नहीं,
हर शक्स जाहिरा न सही, सावधान है ।
काटने लगा है ताल, हुए साज़ बेसुरे,
मुखड़े में, अन्तरे में लगा खींचतान है ।
श्रोता खड़े-खड़े ही, अब ऊँघने लगे,
कबसे न जाने अटकी, उनकी जुबान है ।
पटरी नहीं सड़क पर, दौड़ें हमारी रेल,
करिए यकीन, अपना यह संविधान है ।
-रघुनाथ प्रसाद
तस्वीर आज की यह, उसकी जुबान है ।
अब काफ़िले दलों के, गश्ती में चल पड़े,
दल दल में जिस्म अटका, आफत में जान है ।
वह बोलने लगा तो, बोले चला गया,
शायद नहीं, वो सच-मुच ही बेजुबान है ।
उस सिरफिरे को शायद, इतनी खबर नहीं,
हर शक्स जाहिरा न सही, सावधान है ।
काटने लगा है ताल, हुए साज़ बेसुरे,
मुखड़े में, अन्तरे में लगा खींचतान है ।
श्रोता खड़े-खड़े ही, अब ऊँघने लगे,
कबसे न जाने अटकी, उनकी जुबान है ।
पटरी नहीं सड़क पर, दौड़ें हमारी रेल,
करिए यकीन, अपना यह संविधान है ।
-रघुनाथ प्रसाद
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