Monday, November 16, 2009

मुकम्मल बयान

अशआर नहीं दोस्त, मुकम्मल बयान है ।
तस्वीर आज की यह, उसकी जुबान है ।

अब काफ़िले दलों के, गश्ती में चल पड़े,
दल दल में जिस्म अटका, आफत में जान है ।

वह बोलने लगा तो, बोले चला गया,
शायद नहीं, वो सच-मुच ही बेजुबान है ।

उस सिरफिरे को शायद, इतनी खबर नहीं,
हर शक्स जाहिरा न सही, सावधान है ।

काटने लगा है ताल, हुए साज़ बेसुरे,
मुखड़े में, अन्तरे में लगा खींचतान है ।

श्रोता खड़े-खड़े ही, अब ऊँघने लगे,
कबसे न जाने अटकी, उनकी जुबान है ।

पटरी नहीं सड़क पर, दौड़ें हमारी रेल,
करिए यकीन, अपना यह संविधान है ।

-रघुनाथ प्रसाद

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