Saturday, November 14, 2009

"हौले से मुस्कुरा देना"

जो रात बीत गई है उसे भुला देना ।
नई सुबह को नए रंग से सजा देना ।
गुज़र गया जो वक़्त लौट के नहीं आता,
दिल-ए-नादाँ को क्यों बेवजह सज़ा देना ।

बुरा सा ख्वाब था वो, आँख खुली टूट गया,
उसी की याद लिए कल नहीं गँवा देना ।

फूल पत्थर पे खिलाएंगे, ज़िद हमारी थी,
किस लिए मौसम-ए हालत का सिला देना ।

ख़ाक हो जायेंगे जल जल के जलने वाले,
शरारा थामना हौले से मुस्कुरा देना ।

लगेगी आग तो लपटें यहाँ भी आएँगी,
सुलगती आग को वाजिब नहीं हवा देना ।

शाख़-शाख़ खिलें फूल, बुलबुलें चहकें,
वही कलम तलाशना, यहाँ लगा देना ।
-रघुनाथ प्रसाद

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