न बाँधों नीड़ से इनको,
नवोदित पंख खुलने दो।
खुले आकाश में इनको,
स्वयं निर्बाध उड़ने दो।
बनाले संतुलन अपना ,
परों में शक्ति भर जाए।
हो विकसित आत्मबल ,
इन्हें गिरने संभलने दो।
कभी बदले हवा का रुख,
कभी मौसम बदलता है.
विषम परिवेश से जूझें ,
इन्हे अभ्यास करने दो।
नया विस्तार अम्बर का,
लिए सूरज निकलता है।
चुनौती से भरी राहें ,
त्वरित रफ्तार भरने दो।
अभी जो आ रहा है कल,
वो इनका है, हम न होंगे।
बनें सक्षम ये भविष्य में,
समय के साथ चलने दो।
-रघुनाथ प्रसाद
नवोदित पंख खुलने दो।
खुले आकाश में इनको,
स्वयं निर्बाध उड़ने दो।
बनाले संतुलन अपना ,
परों में शक्ति भर जाए।
हो विकसित आत्मबल ,
इन्हें गिरने संभलने दो।
कभी बदले हवा का रुख,
कभी मौसम बदलता है.
विषम परिवेश से जूझें ,
इन्हे अभ्यास करने दो।
नया विस्तार अम्बर का,
लिए सूरज निकलता है।
चुनौती से भरी राहें ,
त्वरित रफ्तार भरने दो।
अभी जो आ रहा है कल,
वो इनका है, हम न होंगे।
बनें सक्षम ये भविष्य में,
समय के साथ चलने दो।
-रघुनाथ प्रसाद
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