Tuesday, June 9, 2009

न बाँधों नीड़ से इनको

न बाँधों नीड़ से इनको,
नवोदित पंख खुलने दो।
खुले आकाश में इनको,
स्वयं निर्बाध उड़ने दो।

बनाले संतुलन अपना ,
परों में शक्ति भर जाए।
हो विकसित आत्मबल ,
इन्हें गिरने संभलने दो।

कभी बदले हवा का रुख,
कभी मौसम बदलता है.
विषम परिवेश से जूझें ,
इन्हे अभ्यास करने दो।

नया विस्तार अम्बर का,
लिए सूरज निकलता है।
चुनौती से भरी राहें ,
त्वरित रफ्तार भरने दो।

अभी जो आ रहा है कल,
वो इनका है, हम न होंगे।
बनें सक्षम ये भविष्य में,
समय के साथ चलने दो।

-रघुनाथ प्रसाद


No comments:

Post a Comment