खामोश निगाहों में तूफान सा क्यों है ?
अपने घरों में आदमी मेहमान सा क्यों है ?
होठों पे थरथरी है फिर भी जुबां बंद ,
इंसानियत का हाल बेजुबान सा क्यों है ?
खुदगर्ज तो नहीं थे ,हम इस कदर कभी ,
आदायगी भी फर्ज का एहसान सा क्यों है ?
बेखौफ दरिन्दे हैं सहमें हुए से लोग ,
इस शहर का माहौल बियावान सा क्यों है ?
हँस हँस के पिए जा रहे जो आदमी का खून ,
उन भेड़ियों का चेहरा इंसान सा क्यों है ?
-रघुनाथ प्रसाद
Sunday, June 14, 2009
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खामोश निगाहों में तूफान सा क्यों है ?
ReplyDeleteअपने घरों में आदमी मेहमान सा क्यों है ?
वाह क्या बात है? हयात जी की पंक्तियाँ हैं कि-
तन्हाईयों से दिल्लगी अपने मकान में।
हम हो गए हैं अजनबी अपने मकान में।।
नोट - वर्ड वेरीफिकेशन हँटा दें तो टिप्पणी में सबको आसानी होगी।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com