Monday, June 15, 2009

कुछ दर्द बाँट दीजिये

अब आइये जनाब ज़रा पास आइये ,
क्या कहना चाहते हैं , कुछ तो बताइये ।

अरसे से कैद लगते, मन में कई सवाल ,
आखें बता रहीं हैं, जितना छुपाइये ।

ज़ख्मों को छुपाने से नासूर ही बनेगें ,
कुछ दर्द बाँट दीजिए, कुछ खुद उठाइये ।

साहिल पे डूबने से , बेहतर है मेरे यार ,
कुछ हाथ पाँव फेंकिये गोते लगाइए ।

यूँ भागते रहेंगे , कब तक डरे - डरे ,
रुकिए जरा मुड़कर कोई पत्थर उठाइए ।

-रघुनाथ प्रसाद

1 comment:

  1. अरसे से कैद लगते, मन में कई सवाल ,
    आखें बता रहीं हैं, जितना छुपाइये ।

    बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियाँ। कभी मैंने भी लिखा था कि-
    "आँखें बताती सब कुछ और खिलखिलाता दर्पण।"

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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