ना दवा दीजिए ना दुआ कीजिए ।
हो सके तो मुझे भुला दीजिए ।
कुछ उकेरी थी तस्वीर मैंने कभी,
इन दिवारों पे, उनको मिटा दीजिए
जिस तस्वीर में अक्स मेरा लगे,
अपने कमरे से उसको हटा दीजिए
कोई गुजरा हुआ पल न साले जिगर,
सब खतूतों को मेरे जला दीजिए
गर हवाओं में आए हमारी-सदा,
कह-कहों में उन्हें झट दबा दीजिए
ख्वाब में ना कोई हम भरम पाल लें,
आँख लगने से पहले जगा दीजिए
आँख नम ना करें अलविदा की घड़ी,
मुस्कुरा कर मुझे अब विदा कीजिए
-रघुनाथ प्रसाद
Friday, June 12, 2009
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