Wednesday, June 10, 2009

"ये भी कोई जीना है"

जिधर ले चली हवा चले तुम ,
ये भी कोई चलना है ?
यह तो बस कोरा कायरपन ,
स्वयं आप को छलना है ।

जीवन में संघर्ष नहीं तो ,
जीने का आकर्षण क्या?
अभिलाषा फूलों की हो तो,
काँटों बीच निकलना है ।

मन में दृढ़ संकल्प, लगन,
निश्चय यदि आगे बढ़ने का ।
पर्वत से निर्झर जैसा गिर,
बाधाओं से लड़ना है ।

भेड़ ढोर सा चलते जाना ,
पेट पालना सो जाना ।
नाम इसी का अगर जिंदगी ,
फिर तो बेहतर मरना है ।

-रघुनाथ प्रसाद

1 comment:

  1. खुशी का ठिकाना नहीं रहा आपको ब्लाग पर देखकर। मुबारकबाद। रही रचना की बात तो इस मामले में मैं आपका शुरू से कायल रहा हूँ।

    जीवन में संघर्ष नहीं तो ,
    जीने का आकर्षण क्या?
    अभिलाषा फूलों की हो तो,
    काँटों बीच निकलना है ।

    बहुत प्रेरक पंक्तियाँ। वाह। जरा इसी भाव की पंक्तियाँ देखें-

    हहाकार लड़ना होगा किलकारी से भरना होगा।
    सुमन चाहिए अगर आपको काँटों बीच गुजरना होगा।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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