चाह नहीं डॉक्टर बनने की,
नहीं चाह अभियन्ता की ।
चाह नहीं मैं बनूं कलेक्टर,
नहीं फ़िल्म अभिनेता की ।
नहीं चाह वैज्ञानिक बनकर,
नई खोज कर नाम कमाऊँ ।
या साहित्य जगत में कोई,
कीर्तिमान पा कर इठलाऊँ ।
चाह नहीं उद्योगपति बन
नये नये उद्योग लगाऊँ ।
या बन कर मैं कला विशारद,
पद्म-विभूषण पदवी पाऊँ ।
भूत भविष्य जानने की भी,
ना कोई जिज्ञासा है ।
हे देवों के देव प्रभु ।
बस मात्र यही अभिलाषा है ।
एक बार बस निर्वाचन में,
मुझको नाथ जिता देना ।
"जनता की सेवा कर पाऊँ"
दिल्ली तक पहुँचा देना ।
-रघुनाथ प्रसाद
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