तन बदन छलनी किया , तपती सलाखें गोध कर ।
गीत गाती बांसुरी , जब थाम ले उसको अधर ।
बदनुमा बेडौल पत्थर भी , नुमाइश में सजे ,
गर तबियत से तराशा जाए उसको ढूंढ़ कर ।
इस चमन में फूल खिलते गीत गातीं बुलबुलें ,
मुस्कुराते हम अगर सुख दुःख निवाला बांटकर ।
मोम पत्थर को करे , तासीर इतना प्यार में ,
आजमा के देख लें ख़ुद , ख़ुदनुमाई छोड़कर ।
हमनिवाला हमसफर हमराज सारे खो गए ,
हम नहीं दिखते कहीं अब , मैं हुआ सारा शहर ।
बेरहम बेदिल जहाँ को छोड़कर जाता चला ,
दिल भले टूटा हो लेकिन मैं न टूटा इस कदर ।
काश ! ये होता पता , रिश्ते महज व्यापार हैं ,
दूर इतना दूर जाता फिर नहीं आता इधर ।
- रघुनाथ प्रसाद
Tuesday, June 16, 2009
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