Saturday, June 20, 2009

"जीने का मज़ा"

ज़िंदगी मक्सद जहाँ गर, फिर मज़ा जीने में है ।
क्यों शिकन चेहरे पे आए दर्द जो सीने में है ।

कत्ल करना काटना ही काम है तलवार का,
वह नुमाया हाथ में कि म्यान पशमीने में है ।

खोज ला ऐसी दवा, जड़ से मिटा दे रोग जो,
गम नहीं कड़वी सही, गर फायदा पीने में है ।

काम कोई भी न मुश्किल, ठान ले दिल में अगर,
देर है तो पहल में, शुरुआत कर देने में है ।

है कोई मसला कि जिसका हल कभी मुम्मकिन नहीं?
हौसला जज़्बा अगर, इन्सान के सीने में है ।

जी लिए अपनी ख़ुशी के वास्ते तो क्या जिए,
लुत्फ तो औरों की खातिर ज़िंदगी जीने में है ।

-रघुनाथ प्रसाद

7 comments:

  1. मुझे क्या पता कि पडोसी का गजल इस तरह अचानक मेरे सामने आ जायेगा और मैं नाम से ही पहचान भी जाउंगी. इस अच्छे से ग़ज़ल के लिए धन्यवाद.ऐसे ही लिखते रहिये.

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  2. बेहतर ग़ज़ल...

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  3. lutf auron ki khatir jeene me hai ...vaah mera jeeevan udeshya hi likh diya aapne sir ji ....swagat hai

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  4. जी लिए अपनी ख़ुशी के वास्ते तो क्या जिए,
    लुत्फ तो औरों की खातिर ज़िंदगी जीने में है।

    बहुत खूब रघुनाथ भाई। सीमाब अकबराबादी कहते हैं कि-

    कहानी मेरी रूदादे-जहाँ मालूम होती है।
    जो सुनता है उसी की दास्तां मालूम होती है।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  5. ब्लॉग जगत पर पहला कदम रखने प्र स्वागत-
    क्यों शिकन चेहरे पे आए दर्द जो सीने में है ।अच्छा लिखा सकारात्मक सोच है


    ‘.जानेमन इतनी तुम्हारी याद आती है कि बस......’
    इस गज़ल को पूरा पढें यहां
    श्याम सखा ‘श्याम’

    http//:gazalkbahane.blogspot.com/ पर एक-दो गज़ल वज्न सहित हर सप्ताह या
    http//:katha-kavita.blogspot.com/ पर कविता ,कथा, लघु-कथा,वैचारिक लेख पढें
    word veri...यानि यह कमेन्ट बैरी हटाएं

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