Friday, June 12, 2009

"दर्द की दवा"

दर्द का दर्द से आसना हो गया ।
दर्द दिल का मुक्कमल फ़ना हो गया ।

फ़र्क गम और खुशी में न होता जहाँ,
उस शहर में ही अपना मकाँ हो गया ।

तीर उनके निशाने पे बेशक लगे,
जो हुए बे-असर हादसा हो गया,

जो थे कातिल उन्हीं की अदालत लगी,
खुदखुशी हमने की, फैसला हो गया ।

जिसने कश्ती दूबोई थी मझधार में,
अब सुना है, वही रहनुमा हो गया ।

सिरफिरे थे, चिरागाँ जलाते रहे,
जिसने बस्ती जलाई खुदा हो गया ।

-रघुनाथ प्रसाद

1 comment:

  1. जो थे कातिल उन्हीं की अदालत लगी,
    खुदखुशी हमने की, फैसला हो गया ।


    सम्पूर्ण रचना सच्चाई के दर्शन कराती है.
    दिल से बधाई.

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